विदा - मैथिल कविता

होइछ विदा जखने क्यो जग सँ,
फेकल जाइछ हुनक सब पहिरन ।
गेरुआ चद्दरि सीरक कम्मल
गमछा डोपटा पनही अचकन ।।

क्यो नहि फेकय ढ़उआ-कौड़ी,
सोना-चानी लेल लड़य सब ।
महल-अटारी गाड़ी-घोड़ा,
हीरा-मोती लेल लड़य सब ।।

बूझि लिय' अछि महतु कथी केर,
हार-गरदनिक क्यो नहि त्यागत ।
भरल तिजौरी के सब नगदी,
झटपट लूटि लोक सब भागत ।।

लूटत सबटा बस्तु-जात सब,
किछुओ नहि रहि पायत बाँचल ।
दान-पुण्य सँ अरजल जे अछि,
सैह मात्र रहि जायत बाँचल ।।

माथक केस जरै अछि तृण सम,
काठक सम हड्डी जरि जायत ।
सुन्दर गात जरत तूरक सम,
वस्तु कथू संगमे नहि जायत ।।

शास्त्रक ज्ञान- "कियो नहि ककरो",
व्यवहारो मे देखा देलक अछि ।
छोड़ाक' खोंइचा नग्न सत्य के,
आबि करोना सिखा देलक अछि ।।

ख्याति बचय ककरो नहि धन सँ,
कीर्तिक कारण नाम रहय ।
काज करी तैं तेहने सब क्यो,
मरलो पर सब याद करय ।।
मरलो पर सब याद करय !!!!

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