Retired Life

 Retired Life

रिटायर्ड लाइफ - retired life 
रिटायर्ड आदमी को,
सब फालतू समझते हैं।
वे छोटी छोटी बातों में,
बार बार बमकते हैं।
बात करो तो,
अपनी ही हाँकते हैं।
मैंने ये किया, वो किया,
यही फांकते हैं!

                    पत्नी कहती है,
                    दिन भर कुर्सी           तोड़ते हो।
                    मोबाइल में आंखे      फोड़ते हो,
                    जाओ बाजार से,
                    कुछ सामान ही ले आओ!

बहु कहती है --
मुन्ना रो रहा है, 
उसे घुमाने ले जाओ।
चाय बनाने में भी,
वह शर्त लगाती है। 
मुन्ना को घुमा लाऊँ,
तब चाय पिलाती है!

                    रिटायर क्या हुआ,
                    जैसे मेरी सरकार ही गिर गई।
                    सात जन्मों की साथी पत्नी भी, 
                    रूलिंग पार्टी से मिल गई!

टीवी देखता हूँ,
तो बच्चे रिमोट छीन लेते हैं।
कार्टून चैनल देख कर,
आस्था लगा देते है!
हम आस्था लायक हैं, 
ये कैसे जान लेते हैं?
एक पैर कब्र में गया,
ये कैसे मान लेते हैं?

                   लेडीज जिमनास्टिक्स देखता हूँ,
                    तो लोग मुझे देखते हैं।
                    जैसे कहते हों, बूढ़े      हो गये,
                   मगर अब भी आँखें सेकते हैं।

एक दिन नाती पूछ रहा था,
दादाजी, आज पेपर में,
कितने एड आये हैं?
मेरी अनभिज्ञता पर बोला
मम्मी तो कहती है,
आप पेपर चाट जाते हैं।
इतना भी नहीं मालूम, 
तो सिर क्यों खपाते हैं?

                    योगा करता हूँ तो कहते हैं। 
                    मरने से ऐसे डरते हैं।
                    जैसे दुनियाँ में कभी,
                    किसी के बाप नहीं मरते हैं!

मैं कहता हूँ अरे भाई,
अभी रिटायर हुआ हूँ, 
कुछ पेंशन तो खाने दो।
बेटा कहता है 
मूलधन तो ले ही लिया,
अब ब्याज को जाने दो!

                       सोचता हूँ,
                      रिटायरमेन्ट के बाद,
                      ऐसा क्या हो जाता है?
                      आफिस का बॉस,
                      घर में जगह नहीं पाता है!

उसकी सलाह मशविरा,
निरर्थक हो जाती हैं।
उसके बोलने पर, 
क्यों घर वाले झल्लाते हैं?
चाहता हूँ कहूँ,
घर का मुखिया न रहा,न सही,
एक सम्मानित सदस्य,
तो बने रहने दो

                      न सुनना हो मत सुनो,
                      मगर बात तो कहने दो।
                      बोलने की आदत है,
                      धीेरे धीरे छूटेगी।
                      स्वयं को सब कुछ,
                      समझने की धारणा,
                      धीरे धीरे टूटेगी!

कुछ समय के बाद मैं भी,
बालकनी में बैठा चुपचाप,
सड़क की ओर देखूंगा।
आती जाती भीड़ में,
वे कुछ चेहरे खोजूंगा।
जो मुझे, 
फालतू बैठा देखकर भी,
फालतू न समझें।
हमेशा टें टें करने वाला, 
पालतू न समझें!

Modern mishra 
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