मौलाना जलालुद्दीन रूमी जीवन परिचय

मौलाना जलालुद्दीन रूमी का जीवन परिचय





पूरा नाम: मौलाना जलालुद्दीन मोहम्मद रूमी
जन्म: 30 सितंबर 1207, बल्ख (अब अफगानिस्तान में)
मृत्यु: 17 दिसंबर 1273, कोन्या (अब तुर्की में)
पिता: बहाउद्दीन वलद
मुख्य कृतियाँ: मसनवी-ए-मौलवी, दिवान-ए-शम्स-ए-तबरिज़
दर्शन: सूफ़ीवाद, प्रेम और ईश्वर की भक्ति

परिचय

मौलाना जलालुद्दीन रूमी एक प्रसिद्ध फ़ारसी कवि, इस्लामी विद्वान और सूफ़ी संत थे। उनका जन्म 1207 में बल्ख (वर्तमान अफगानिस्तान) में हुआ था, लेकिन बाद में वे कोन्या (वर्तमान तुर्की) चले गए। उनके पिता बहाउद्दीन वलद एक प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान थे, जिनके विचारों का रूमी पर गहरा प्रभाव पड़ा।

जीवन यात्रा

रूमी का परिवार मंगोल आक्रमणों के कारण बल्ख छोड़कर विभिन्न स्थानों से होता हुआ अंततः कोन्या (तुर्की) में बस गया। वहाँ उन्होंने इस्लामी धर्मशास्त्र और अध्यात्म की शिक्षा प्राप्त की। उनकी मुलाकात सूफ़ी संत शम्स तबरेज़ से हुई, जिनसे उन्होंने आध्यात्मिक प्रेम और भक्ति का गहरा ज्ञान प्राप्त किया। शम्स के प्रभाव से ही रूमी ने अपनी कई महान काव्य रचनाएँ लिखीं।

मुख्य कृतियाँ

  1. मसनवी-ए-मौलवी – यह सूफ़ी दर्शन का एक महान ग्रंथ है, जिसे इस्लामी रहस्यवाद का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है।
  2. दिवान-ए-शम्स-ए-तबरिज़ – यह उनकी सूफ़ी कविताओं का संग्रह है, जिसे उन्होंने अपने गुरु शम्स तबरेज़ की याद में लिखा।

शिक्षा और विचार

रूमी का दर्शन प्रेम, आध्यात्मिक ज्ञान और ईश्वर की भक्ति पर आधारित है। वे मानते थे कि प्रेम ही वह शक्ति है जो मनुष्य को ईश्वर से जोड़ती है। उनकी कविताएँ रहस्यवाद, प्रेम और आत्मज्ञान से भरी हुई हैं।

मृत्यु और विरासत

रूमी का निधन 17 दिसंबर 1273 को कोन्या में हुआ। उनकी समाधि को "मेवलवी ऑर्डर" के अनुयायियों ने एक सूफ़ी केंद्र बना दिया। आज भी उनकी कविताएँ और विचार पूरे विश्व में लोगों को प्रेरित करते हैं।

निष्कर्ष

मौलाना रूमी न केवल एक महान कवि थे, बल्कि वे सूफ़ी परंपरा के एक प्रमुख स्तंभ भी थे। उनकी रचनाएँ प्रेम, मानवता और आध्यात्मिक जागरूकता का संदेश देती हैं, जो आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।

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