मेरे लिए क्या क्या करोगे


मेरे लिए क्या क्या करोगे

एक दिन जब हम पुराने बगीचे मे मिले
पेड़ की टेक ले, चश्मा लगाए उसने पूछा
मेरे लिए क्या क्या करोगे

एक हाथ पेड़ पर लगा, 
और उसकी सुर्ख आँखों मे नजरों को गड़ा
मेने बोला
तुम्हारे लिए जिंऊंगा, और मौत भर तुम्हारा रहूंगा 

वो देख मुस्कराने लगी 
फिर थोड़ा सोच उसने पूछा 
मेरे लिए और क्या करोगे 

मेंने मेरे दिल पर हाथ रख उसे 
कहा 
तुम कर अपने सपनों को इकट्ठा करो 
मैं एक एक उसे पूरा करने की जेहद करूंगा 

क्या मुझे आज़ादी रहेगी 
उसका ये सवाल फिर आया 

तुम्हारी खुशी हो जिस काम मे 
वो तुम करना,
 बस मेरे और तुम्हारे विश्वास की डोर को मजबूत रखना 
मेरे तरफ से हमेशा रूढी बंधनों से आज़ाद रहोगी 
पर मेरे लिए क्या क्या करोगी 
(मेरा सवाल था) 

पिया मैं सच कहूँगी 
आपको खुशियां मिले ऐसे मैं नित नए कृत करूंगी 
रहूंगी सजी सवरी, और भद्र व्यवहार करूंगी 
पर सवाल तुमने क्यू किया 
पहले बताओ मेरे लिए क्या क्या करोगे 

उसकी शरारती बातें खत्म नहीं हुई 
मुझे सोच इसी बात की थी 
बनावटी ज़वाब ना दूँ 
ना चांद दे सकता हूँ, ना सूरज 
फिर क्या कहूँ 
मेने फिर एक गुलाब लिया, जो पिछले पॉकेट मे था 
घुटने पर मैं, और कहा 
तुम्हारे लिए कभी मुहब्बत कम ना हो 
ये दुआ ऊपर वाले से रोज करूंगा 

इतना सुन वो आँखों से भर आयी 
आलिंगन कर 
फिर ना पूछा 
मेरे लिए क्या क्या करोगे 






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